14.August 2021
लेखक बालचंद्रन चुल्लिक्काड लिखते हैं :- आज़ादी के मायने हैं -- भूखे को खाना, प्यासे को पानी, ठंड से ठिठुरते को ऊनी कपड़ा और थके-माँदे को बिस्तर। आज़ादी कवि के लिए शब्द है, शिकारी के लिए तीर, तनहाई के मारे के लिए महफ़िल है, डरे हुए के लिए पनाह, आज़ादी यानि अज्ञानी को ज्ञान, ज्ञानी को कर्म, कर्मठ को बलिदान और बलिदानी को जीवन। क्या हम कविता की इन पंक्तियों को सार्थक करते हैं ? क्या हम अपनी आज़ादी को सुरक्षित रख पाने में कामयाब हैं ? हक़ीक़त यह है कि हम अपनी समस्याओं से भागने को समाधान समझते हैं। आज आजाद भारत में पूंजीवाद फिर से हावी होता जा रहा है एवं निम्न वर्ग के लोग समस्या व शोषण का शिकार होते जा रहे हैं। आज की इस महंगी जिंदगी में पूंजीवादी लोग रईसी की जिंदगी जी रहे हैं , लेकिन भारत माता की सच्ची संतान कहे जाने वाले किसान व मजदूर भुखमरी , खानाबदोशी एवं आत्महत्या का शिकार हो रहे हैं। निदा फ़ाज़ली के शे'र है :- नक़्शा ले कर हाथ में बच्चा है हैरान, कैसे दीमक खा गई उस का हिन्दोस्तान। क्या यही आजादी की कीमत है ? यदि हम आजादी की सही कीमत पाना चाहते हैं तो हमें समाज में कुछ सकारात्मक परिवर्तन लाने होगें | अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था “आप जिससे समाज में परिवर्तन लाने की उम्मीद रखते हैं वह और कोई नहीं खुद आप ही हैं”। शून्य हो चुकी हमारी चेतना को फिर से जगाना होगा और पूरी जिम्मेदारी के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन करना होगा। #AzadiKeMayne #हिंदी_पँक्तियाँ#hindipoetry #hindinama #hindihouse #kalamshala #साहित्य_दर्पण #साहित्यनामा #विद्रोही #विवेकशुक्ल